मेरे प्रीतम
मेरे प्रीतम
मेरा हक नहीं है तुझ पर
ये जानती हूँ मैं।
तू आजाद एक परिंदा
ये मानती हूँ मैं।।
पर नादान दिल ये मेरा
हसरत पाल बैठे
जब जब भी तुझको छोड़ने
की ठानती हूँ मैं।
एक आखिरी ख्वाहिश बना
है साजना तू ही।
बन साँस इन रगों में बसा
है जालिमा तू ही।
चाहकर भी तोड़ न पाती
बंधन तुझसे ऐसा
अंजलि की ये जिन्दगानी
है बालमा तू ही।
सुख दुख की हूँ साथी सुनो
मैं साथिया तेरी।
एक अनकही कहानी हूँ
मैं माहिया तेरी।
छुड़ा हाथ कहाँ जाओगे
दूर ऐसे मुझसे
एक परछाई सी ही हूँ
मैं बेलिया तेरी।