मेरे पापा--दो शब्द
मेरे पापा--दो शब्द
कभी कुएं का
शीतल पानी, कभी नदी की धार हो तुम
कभी मझधारों में
फंसी नाव की, रक्षक बन पतवार हो तुम
मेरी उंगलियाँ थाम के तुमने,
सिखा दिया चलना मुझको-
राह दिखा कर जीवन की तुमने,
सिखा दिया रहना मुझको-
जीवन की इस कठिन राह में,
कंकड़, पत्थर, काटें हैं-
सिखा दिया तुमने हमको,
कैसे इनकी खाईयों को पाटे हैं-
जीवन के पल में
छलके वह छलकता प्यार हो तुम-
कभी मझधारों मे फंसी नाव की,
रक्षक बन पतवार हो तुम-
<
/p>
जीवन की हर राह में
छलकता, तेरा ही तो पसीना था-
पेट खाली, जेब खाली ,
इन संघर्षों में कैसे जीना था-
कब सुबह,कब शाम ढली,
यह पता नहीं चल पाती थी-
तेरे आने की आहट
बस तेरी देह गंध ले आती थी-
कभी कभी
आफताब बने तो, कभी कभी महताब हो तुम-
कभी मझधारों में
फंसी नाव की, रक्षक बन पतवार हो तुम-
कभी कुएं का
शीतल पानी, कभी नदी की धार हो तुम-
कभी मझधारों में
फंसी नाव की, रक्षक बन पतवार हो तुम.