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Jyoti Sharma

Abstract

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Jyoti Sharma

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मेरे मन की पाती है

मेरे मन की पाती है

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 एक पाती मैंने लिख डाली उस प्रियतम के नाम

 फिर सोचा कैसे आएगी भला यह उसके काम


 वो जो खाकी पहना करता और सीमा की रक्षा करता

 इक प्यारी मुस्कान दिखाकर वो मेरे सब दुख हरता 


 फिर सोचा क्या लिख पाऊंगी उसको क्या मैं बतलाऊंगीं

 हम पर कैसी आन पड़ी है उसको क्या मैं समझाऊंगी


 कि घर की दीवार गिरी है बाबा पे यूं मार पड़ी है

 अम्मा तेरी भूखी प्यासी दिन भर से खलिहान खड़ी है


 बनिए का पैसा बाकी है घर में ना बिजली आती है

 दो मीठी बातें इसमें ना आखिर ये कैसी पाती है


 लोगों ने भी बंद कर दिया अब तो घर में आना

 लगता है बिकने को आया घर का ताना-बाना


 मुन्ने का स्कूल छूटा है कल से रूठा रूठा है

 सत्य अहिंसा और मानवता है कहता है सब झूठा है


 सब कुछ तो मैंने कर डाला इस पाति के नाम

 अब इसको प्रियतम तक भेजूं इतना सा है काम


 खुशियों की चिट्ठी नहीं कोई दुखियों की यह पाती है

 इसको पढ़ वो क्या सोचेंगे चिंता मुझे सताती है


 दुख चिट्ठी में भेजे पत्नी साहस कहां से लाती है

 रोक लिया ना भेजूंगी यह मेरे मन की पाती है।


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