मेरे महबूब का एक बहुत सुंदर रकीब है
मेरे महबूब का एक बहुत सुंदर रकीब है
मेरे महबूब का एक बहुत सुंदर रकीब है
फिर भी वो मेरा है ये मेरा नसीब है
सनम रूठे मुझसे तो मैं भी रूठ जाता हूँ
उसे मनाने की मेरी ये अलग तरकीब है
हम बाते चांद, सितारे, किताबों की करते है
हमारे इश्क़ में आवारापन नहीं तहजीब है
यारों से हमें एक-एक नाम इनाम मिला
उसे कलम और मुझे कहा आप अदीब है
यूं मेरे शहर से दो शहर आगे है हबीब का घर
आँख खोलूँ तो वो दिखता है कितना अजीब है
मैं जमी पर था वो छत पे सैर कर रहीं थीं
मैं सही कहता था के चांद बहुत करीब है।