कहने को वो शख्स
कहने को वो शख्स
1 min
306
कहने को वो शख्स मेरा है पर मेरा नहीं होता
कैसा दरख़्त हू मैं जहाँ चिड़िया का बसेरा नहीं होता
बहुत चुभती है मुझे मेरी तन्हाई रातों मे
मगर करे तो करे भी क्या रातों मे सवेरा नहीं होता
बहुत बद्दुआए देते हैं उसे उसके पुराने आशिक
मर जाती वो अगर मेरी दुआओं ने उसे घेरा नहीं होता
ये दिल तोड़ने वाले सोचते हैं मैंने उसका सब लूट लिया
मगर जब तक दिया जलता है तब तक अंधेरा नहीं होता
ग़म, सितम ये ग़ज़ल मेरे हिस्से कभी ना आते
ग़र उस रात उसके शहर मे मेरा डेरा नहीं होता।