मेरे महाविद्यालय
मेरे महाविद्यालय
विद्यालय का विराट अंग,
जो कर दे सारे मोह भंग|
जो नाम से ही विशाल है,
महाविद्यालय इसका नाम है|
ये समय डायरी के पन्नों में,
कुछ ज़्यादा जगह घेरता है|
किन्तु मतिधरियो की बुद्धि,
ये सब से पहले फेरता है|
बाल कांड का अंत यह स्थल,
नाना विषयों का प्रयाग है|
जिसने जिया इसको जी भर,
धन धन उसके भाग है|
अर्ध दशक का काल है ये जो,
जीने के गुर सिखलता है|
पर शिक्षार्थी वर्ग नासमझ,
ये समझ कतई ना पता है|
सूत्रों के अनुसार यह समय,
सुखदता की परिपाटी है|
इसके उपरांत जीवन का रस,
कंद मूल की भांति है |
ये निर्माता यही विनाशक,
इसकी महिमा अविराम है|
वैतरणी पार कराने वाले ,
"महाविद्यालय" तुझे प्रणाम है||