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Kumar Gaurav Vimal

Abstract Fantasy

4.5  

Kumar Gaurav Vimal

Abstract Fantasy

मेरे कलम ने ली जब अंगड़ाई थी

मेरे कलम ने ली जब अंगड़ाई थी

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आशाओं से भरी चाल थी उसकी,

उम्मीदों से भरी स्याही थी,

ज़िंदगी के उलझे पन्नों पर मेरे,

कलम ने ली जब अंगड़ाई थी....


टूटे फूटे शब्दों से अपनी बात

 कहने का ये मेरा जरिया था,

नासमझ दुनिया को नजरंदाज,

करने का ये मेरा नज़रिया था,


आए थे ख़्याल ढेर सारे, 

हाथ भी थोड़ी कपकपाई थीं,

ज़िंदगी के उलझे पन्नों पर मेरे,

कलम ने ली जब अंगड़ाई थी...


अल्फाज़ो के अहसास से ये मेरे,

दिल के दर्द की दवा सा बन गया,

मै तो बस लिखता रहा और,

देखते देखते कारवां सा बन गया,

इस दुनिया से अलग हटकर मैंने,


इसमें खुद की दुनिया बसाई थी,

ज़िंदगी के उलझे पन्नों पर मेरे,

कलम ने ली जब अंगड़ाई थी...


आशाओं से भरी चाल थी उसकी,

उम्मीदों से भरी स्याही थी,

ज़िंदगी के उलझे पन्नों पर मेरे,

कलम ने ली जब अंगड़ाई थी।


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