मेरे झरोखे बदरिया....!
मेरे झरोखे बदरिया....!
अब न नयन में आँसू खारे
अब न गगन में भीगे तारे
न ही क्षितिज पे मेघा कारे
सजल निशा विदा लेती है
मेरे झरोखे पर आ-आकर
उड़ती बदरिया सदा देती है
अब न कालिमा भीति देती
रात्र्याकाश मख़मली थाल में
मात्र उजास के बिखरे मोती
नयन छवि में खो-खोकर
हरसिंगार की डाली-सा मन
झूम रहा फागुनी बयार में
कभी शकुन्त-सा उड़ता ये मन
प्रेम-सिक्त भीगे नयनों सँग
लखता जीवन नभनीलिमा से
अभेद-प्रेम युत द्वय ये नैना
बाट जोहते उस प्रियतम की
रहा जो सँगी जन्म-जन्म से।