पूरब की अरगनी पर....
पूरब की अरगनी पर....
1 min
358
पूरब की अरगनी पर
डाल आई कुछ अहसास,
गीले हैं ज़रा।
अरुण तनिक चढ़ने दो
समीर ज़रा बहने दो,
नम हैं अभी।
समय-चक्र चलने दो
तमस ज़रा छँटने दो,
सीले हैं तनिक।
नेह से ही संभालना
देखना, आहत न हों,
कोमल हैं ज़रा।
समय रहते उतार लेना
हौले से पुचकार लेना,
अबोध हैं तनिक।
रह-रह धूप दिखा देना
नेह से सहला देना,
भीगें न फ़िर कभी।
अधखुले, अनसुलझे-से हैं
धीरज से सिरा खोजना,
उलझें न कहीं।
