रूप की छटा लिए.....!!
रूप की छटा लिए.....!!
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रूप की छटा लिए
आज फिर से उमगा था
वो झिलमिल सांध्य-तारा,
ज्यूँ साँझ-सुंदरी ने
फूल अपने जूड़े में
टाँका हो एक न्यारा
थरथराती तेरी छुअन की
गुदगुदाती अनुभूति से
मुस्काया गगन सारा,
जलसे को सँवारने
आन जुटे इक संग
सारंग औ' सितारे
झिलमिलाया अभ्र सारा
बादलों की टोली जब
ठिठकी इन्हें देख तो
इठलाए विधु-तारक,
रजतपरी-सी चंचला
छाई जब ज्योत्स्ना
रूप-लावण्य सराबोर
इतराया था व्योम सारा
दूर-दूर ही से
गाहे-बगाहे जो
मिल जाया करते थे
बस यूँ ही
नाम को ये सारे।
इन दिनों हाल यह कि
रवि प्रतीची उतरते ही
प्रीत-रेशमी-डोर गह
हर साँझ मेरी छत पे
झरते ही रहते लकदक
अनगिन नखत ये बंजारे।