STORYMIRROR

Himanshu Mahla

Others

4  

Himanshu Mahla

Others

रूप की छटा लिए.....!!

रूप की छटा लिए.....!!

1 min
163

रूप की छटा लिए

आज फिर से उमगा था

वो झिलमिल सांध्य-तारा,

ज्यूँ साँझ-सुंदरी ने

फूल अपने जूड़े में 

टाँका हो एक न्यारा 


थरथराती तेरी छुअन की 

गुदगुदाती अनुभूति से 

मुस्काया गगन सारा,

जलसे को सँवारने

आन जुटे इक संग

सारंग औ' सितारे

झिलमिलाया अभ्र सारा 


बादलों की टोली जब

ठिठकी इन्हें देख तो

इठलाए विधु-तारक,

रजतपरी-सी चंचला

छाई जब ज्योत्स्ना

रूप-लावण्य सराबोर

इतराया था व्योम सारा 


दूर-दूर ही से 

गाहे-बगाहे जो

मिल जाया करते थे 

बस यूँ ही 

नाम को ये सारे।


इन दिनों हाल यह कि

रवि प्रतीची उतरते ही

प्रीत-रेशमी-डोर गह

हर साँझ मेरी छत पे

झरते ही रहते लकदक

अनगिन नखत ये बंजारे। 



साहित्याला गुण द्या
लॉग इन