मेरे हमसफ़र..!
मेरे हमसफ़र..!
यूँ ही नहीं सदियों का सफ़र पल में गुजरता है,
कुछ तो बात होती है जो हम सा हमसफ़र साथ होता है,
सुख ही नहीं दुःख के पलों को भी हँस कर बांटना पड़ता है..!
कैसे गुज़र गया सफ़र वर्षों का साथ में
यूँ लगता है अभी कल की ही बात है..!
तुम मिले और हम बंध गए
जनम जनम के साथी बनकर सात वचन और सात फेरों के साथ
है तमन्ना यही, यही गुजारिश यूँ थामे रहना हाथ मेरा
हो ख़ुशियों की खिलखिलाती धूप या फिर ग़मो की बरसात...!!
अब जब कि नहीं जानते हम दोनों ही
कब ज़िंदगी खींच ले अपना हाथ,
इतने वर्षों का सफ़र जो गुज़रा है साथ
आओ हम इक दूजे के और समीप आ
कर
लेकर इक दूजे का हाथ अपने हाथों में
गुज़रे वक़्त के ख़ुशनुम लम्हों को
जो हमने सहेज रखें हैं हमारे यादगार पलों को
आओ इक इक कर याद करके
पुनः उनको जी लेते हैं
ये गुज़रा वक़्त कैसे रित गया कुछ पता नहीं चला
मानो अभी कल की बात हो
ज़िंदगी की इक ख़्वाब की तरह कट गई थी
कैसे एक के सपने दूसरे के लिए एक लक्ष्य बन गया !
तुम्हें पाकर लगा यूँ मानो अब तो ज़िंदगी मिली है
मेरे हम सफ़र...:!
जीवन का अंतिम लम्हा.. / अंतिम साँस
जैसा भी हो
पर...
तुम्हें पाकर मैं अभिभूत हूँ..!
बस.. ऐसे ही हर सफ़र पर साथ बने रहना
मेरे हमसफ़र..!!