मेरे घर में आईना नहीं है।
मेरे घर में आईना नहीं है।
मेरे घर में आईना नहीं है,
दीवारों में निकल आई दरख्तों से झाँकते लोग,
मेरे चेहरे पर निकल आई झुर्रियों का पता देते हैं।
मेरे घर में घड़ी नहीं है,
चौराहे पे गाड़ियों के लगे तांते,
ऐ.सी. कार में बैठे निरंतर हॉर्न देते, बेताब होते लोग,
और नुक्कड़ पर झुग्गी शराब खाने में बढ़ती भीड़,
दिन के चढ़ आने और उतर जाने का पता देते हैं।
कभी पडोसी की बीवी के रूठ कर मायके चले जाने के बाद,
उन के बच्चे मेरे ही घर पर दिन बिताया करते थे,
आज बच्चों को गोद में उठाने पर भी लोगों की शक भरी निगाहें,
हमारे अन्दर उबल कर आ गई हैवानियत का पता देती है।
जाने कब थमेगी,
मशीनों से बढ़ती मित्रता और इंसानों का व्यापार,
आँखों में बढ़ आई लाली का सड़कों पे बिखरी खून में तब्दिली का सिलसिला
एक प्रलय के जल्द ही आने का पता देती है। ।