मेरे अन्दर का कलाकार
मेरे अन्दर का कलाकार
रोज जोर मारता है,
कुछ कर दिखाने को,
मेरे अन्दर का कलाकार,
पर वह निकलने से पहले,
बहुत सारी दुनियादारी उसे,
फिर से दबा देने को,
मजबूर कर देती हैं,
वह त्रिस्कृत्त सा रह जाता है,
मैं भी खुद से ही खुद को,
ठगा सा महसूस करता हूं,
नमक, तेल, रोटी का चक्कर
अच्छे अच्छों को बना
देता है घनचक्कर,
बस अगले मौके की
ताक में फिर दिल बहला लेता हूं।