मेरा मन एक लकड़ी की अलमारी है
मेरा मन एक लकड़ी की अलमारी है
मेरा मन
एक लकड़ी की
अलमारी है
शीशों वाली
उसके अंदर बंद है
दीमक लगे सामान की ही तरह
मेरे अधजले अरमान और
स्वप्न
उस अलमारी में
जड़ा है
एक जंग लगा ताला
सदियों से
जिसे अब न तो कोई
खोलता है
न कोई खोलने वाला है
और न ही मुझे
उसे अब किसी से
खुलवाना है
अब तो
जिन्दगी में वह मुकाम
आ गया कि
मैं ही अपनी जिन्दगी की
कहानी को
अपने निभाये किरदार को
अपने लिखे अल्फाजों को
अपने गाये गीतों को
अपनी मीठी यादों को
अपने संग घटित बुरी बातों को
हादसों को
रुकावटों को
सारे खट्टे मीठे वृत्तान्तों को
भूलने लगी हूं
अब तो बस
लगभग बंद होती आंखों को
पलकें बंद होने का
इंतजार है
इनके झपकते ही
अलमारी का ताला खुल
जायेगा और
इसमें रखा
मेरा सामान
मेरी तरह ही फिर नहीं
मिलेगा।
