मेरा क्या था कुसूर
मेरा क्या था कुसूर
मेरा क्या था कसूर बता दो
मैं क्यूं थी इतनी मजबूर बता दो?
क्या बेटी होना अपराध यहां पर या
दलित होना है पाप यहां पर
किससे अब सवाल करूं मैं
सच की किससे आस रखूं मैं!
दलित और बेटी दोनों थी मैं
शायद यही बड़ा अपराध था मेरा
ऊंच-नीच का भेद न जाना
शायद यही पाप था मेरा।
किसी ने मेरे तन को नोचा
किसी ने मेरे मन को नोचा
जिसके मन में घृणा थी जितनी
उसने उतना मुझको नोचा।
जब जिन्दा थी तब भी तो
कहां मुझे सम्मान मिला
हर दिन हर पल बस मुझको
घृणा और अपमान मिला
जाति और लिंग के भेदभाव का
हमेशा मिलता ज़हर था
भद्दी गालियों से कोई न कोई
मेरे मन पर ढाता कहर था।
कौन थी मैं? क्या धर्म था मेरा?
यह बात कौन बतलाएगा?
क्यूं रात में मेरी चिता जलाई
किस धर्म की यह परंपरा निभाई
किसने मुझको कंधा दिया था
आखिरी बार किसने छुआ था
कहां थे मेरे मां बाप और
कहां थे मेरे भाई ,
कौन था जिसने चुपके-चुपके
मेरी चिंता में आग लगाई?
ऐसे जीवन से बेहतर मौत लगी
अब इन अत्याचारों से तो बची
जब समाज ने मुझको ठुकराया
तब मौत ने मुझको गले लगाया।
यह प्रश्न अनुत्तरित है अब भी
इसका उत्तर तुम्हें खोजना होगा
जैसा जीवन मुझे मिला था
ऐ बेटियों तुम्हें !
ऐसे जीवन से बचना होगा!