STORYMIRROR

Dinesh Yadav

Tragedy

2  

Dinesh Yadav

Tragedy

छलावा

छलावा

1 min
193

क्यूं हर बार

हम मजदूरों के साथ ही ऐसा होता है,

हम मांगते हैं कुछ और

बदले में कोरा भाषण ही मिलता है।

हमारी आवाज क्यूं हर बार

किसी कोने में दब जाती है

हमारे नसीब की रोटी

क्यूं चूल्हे में ही जल जाती है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy