मधुर बरसात
मधुर बरसात
बहरी हुई दीवारें,
मूक बनी है सांकल,
बहा जो एक कतरा,
आँसू का,
पूरी रात भींग गई
बारिश की ये,
शीतल बूंदें,
शोलों सी सुलगती है
बात प्रेम की,
अधरों पर,
आती व जाती है
खिले हुये,
फूल भी सूखे,
रखे हुये गुलदस्ते में
घिर आये बादल,
फिर वही,
विचारों वाले,
कह दो ना,
इस बार तुम
भिगोगे संग मेरे
मधुर इस बरसात में