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Rajesh Singh

Romance Classics

4  

Rajesh Singh

Romance Classics

मौसम

मौसम

2 mins
239


यह कैसी रुत है छाई ?

मौसम ने ली अंगड़ाई,

यह सावन की कैसी घड़ी है ?

 बादल दुशाला ओढ़े खड़ी है।


यह मौसम कैसा चकरा रहा ?

मेरा मन क्यों घबरा रहा ?

तुम बड़ी बहके बहके से लग रहे हो ?

ये कैसा प्रश्न लिए मन में खड़े हो ?


तुम्हारे अरमान कुछ और लग रहे हैं।

क्यूं जज्बात यू बहके बहके लग रहे हैं ?

ये कैसी बारिश की घड़ी है ?

तुम जुल्फें क्यूं खोले खड़ी हो।


मेरा मन क्यों शर्मा रहा है ?

जाने क्यों दिल घबरा रहा ?

मन को भरमा रहा।

अब ये दिल है तरसे तरसे से।

यह कैसी हवा चली है तन को भिगो चली ,

चोली है भीगे भीगे से ?

भीगा ये बदन लगाए दिल में अगंन।


हम क्यों है बहके बहके से ?

यू तो बहकाओ ना मन को बहलाओ ना ?

क्यू ये बिजली कड़के कड़के से।

सावन लिए खड़ा, मौसम बारिश लिए खड़ा ,

कैसे घर पे हम जाए ?

जुल्फें फहेराओ ना,यू तो तड़पाओ ना ?


मिलके चलो खो जाए।

सावन लिए खड़ा, पीपल पे खुला पड़ा।

मन क्यू कहे,आज खो जाए ?

यू तो छुपाओ ना,मस्ती में आओ ना।

खुल के चलो आज भींग जाए।

कैसी घटा खड़ी बिजली लिए खड़ी ?

बदन में लगी आग जैसे,

बारिश के ये लड़ी मोती लिए खड़ी ,

कोयल है चहके चहके से।


नजरे मिलाओ ना, मेघा रुक जाओ ना

हम है बड़े सहमे सहमे से ,

बारिश की तेज लड़ी, बिजली लिए खड़ी,

मेरा मन क्यू है तड़पे तडपे से ?

यूँ तो घबराओ, ना नजरें मिलाओ ना,

मिलके चलो आज खो जाए।


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