मौन
मौन
जो मौन रहकर ही, अत्याचार को सहता जाता है
इतिहास की परिपाटी पर, वो कायर कहलाता हैं
जिसने अपमान क्रूरता, और छल को नमन किया
उसने तो खुद ही गुलाम, अपना सुंदर वतन किया
मौन रहे अत्याचार सहा, गिराया मान जवानी का
सब जानकर चुप्पी साधी, कारण बना गुलामी का
यदि मौन पड़े रहते वो भी, तो स्वतंत्रता कैसे पाते
जो विरोध न करते गद्दारों, तो परतन्त्र ही रह जाते
आओ हम आवाज़ उठाये, आदर्शों का मान रहे
अधिकार रहे हर गरीब का, बुजुर्ग का सम्मान रहे
न क्रूरता न छल हो, और हर तबके की शान रहे
जैसे सागर जल बहता हैं, ऐसे अपना हिदुस्तान रहे
जो हक़ मारते गरीब का, हनन करते अधिकारों का
एक दिन पतन सुनिश्चिंत होगा, ही ऐसी सरकारों का
अत्याचारों को चुप सह जाएं, हम इतने मजबूर नहीं
उनको भी तुम बतला देना, के हमसे दिल्ली दूर नहीं
विरोध नहीं करते जो भी अंधियारे का
वो मुंह कैसे देखे पाएंगे उजियारे का
क्यों हाथ नहीं उठते तेरे सम्मान का दीया जलाने को
क्यों मजबूर हुआ है जुगनू रास्ता तुम्हें दिखाने को
छल कपट क्रूरता पर जब जब चुप्पी साधी है
तब तब ही मानव सम्मान की समझो बनी समाधि हैं
आओ मिलकर आवाज़ उठाये मान रहे अधिकारों का
ताज गिरा देंगे हम धर्मा अब ऐसी सरकारों का