मैंने ज़िंदगी को थोड़े क़रीब से देखा है..
मैंने ज़िंदगी को थोड़े क़रीब से देखा है..
जेब में पैसे ना होने पर
लोगों को बदलते देखा है,
हसरतों के बाज़ार में अक्सर
लोगों को नीलम होते हुए देखा है।
अमीरी के नाम पे
मैंने एक ग़रीब का दिल देखा है,
इस समाज में मैंने
लोगों का गुमान लूटते देखा है।
एक आशिक़ को बेवफ़ा होते हुए भी देखा है
और उसी आशिक़ को मैंने इश्क़ के दर्द में
शराब भी पीते हुए देखा है।
हाँ मैंने ज़िंदगी को थोड़े क़रीब से देखा है
मनचले से मन को ठहराव की ज़िंदगी
जीते देखा हैं।