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Neha Prasad

Others

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Neha Prasad

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निर्बाक(silence)

निर्बाक(silence)

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ना अब शोर की इच्छा है

ना अब सुकून की तलब है

खोना जब खुद में ही है

तो क्या ही शोर और क्या ही सुकून

की दास्तान-ए-इश्क़ है।


याद है उस रात की कहानी

बिना कुछ बातों के भी

तुम्हें उस रात के सन्नाटे में पुकारना

और तुम्हारा धीरे से मेरे कानों के पास

‘हंजी’ कहना,

उस दिन बताया ना था तुम्हें

पर वो तुम्हारा हंजी कहना

ना तो सुकून लगा

ना ही शोर लगा मुझे।


बस खो गयी थी मैं उसमे

ना जाने किसकी तलाश में

बेचैन सी हो गयी थी मैं

कोई डर सता रहा था?

या अब बदल चुकी थी मैं?

कुछ मतलबी सी हो गयी थी क्या अब मैं?

या ग्रहण लग गया था मुझ में?


ख़ामोश इतनी कभी ना हुई थी

हर्फ़-दर-हर्फ़ हमेशा बया खुद को की थी मैं

पर फिर देख चाँद को एक ख़्याल आया-

की आज पूनम की रात में ये चाँद पूरा सा है

वही कुछ दिन बाद आधा अधूरा सा हो जाएगा।


शायद यही हो रहा मेरे साथ भी अब

कुछ आधी अधूरी सी हूँ अभी

एक दिन पूरी हो जाऊँगी

अभी शायद कहीं गुम हूँ

वापस लौट आऊँगी।


और फिर तुम्हारे हंजी कहने पर

महसूस मुझे कुछ तो होगा।



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