मैं
मैं
मैं,
मुझे कौन सा मैं चाहिए ?
हाँ , है ना
बहुत सारा मैं
हर किरदार और साझेदार के साथ
बदल जाता है मेरा मैं
और कभी-कभी अकेले में भी
वो सच वाला मैं नहीं आता
अदला-बदली कर देती हूँ
समय देख कर
और इतरा जाती हूँ
अपनी ही चतुराई पर
आँखों में आँसू भर कर
खुद को मुस्कुराती मैं दिखाती हूँ
दर्द से कराहते छलनी मन को
भरोसे के मैं से सजाती हूँ
असहज हो कर भी
सहजता का मैं पहने रहती हूँ
ढेरों चाहतों को
संतोष का रूप मैं दिखाती हूँ
कमतर नहीं किसी से
यह मैं हावी रहता है
अपनी ही मैं की शक्ति से
मेरा मैं जिंदा रहता है
खिलखिलाते मैं को
ध्यान से देखना
हल्की सी नमी वाली मैं
कहीं पीछे दुबकी हूँ
पर रहने दो न उसे अनछुआ
स्वाभिमान वाले मैं को ही आगे रहने दो
मेरा अल्हड़ वाला मैं बहुत भाता है मुझको
मासूमियत से लबरेज बड़ा लुभाता है
अब बोलो
तुम्हें मेरा कौन सा मैं चाहिए ?