मैं
मैं
सहज सा तुमहारा उद्वेग का बिखरना
उसमें मेरे चिर प्रतिक्षित समर्पण का संगम
कहां हूँ मैं
अब कोई निशां मिलता नहीं
तुम अपने साथ मेरा वजूद भी ले गये
कुछ तो मेरा मुझमें रहने देते
एक पल को तो अपने बिना जीने देते
कहां ढूंढू मैं अपना जहां
मेरा कुछ तो मुझमें रहने देते
तुमहारा बिखरता उद्वेग मेरा
चिर प्रतिक्षित समर्पन अब
अधूरा बिखरा मेरा मैं नमी।