मैं वही हूँ
मैं वही हूँ
रात चुपचाप थी
दबे पाँव जा रही थी,
घना अँधेरा जखड़ा था ठंडा चाँद पकड़ा था।
एक अजीब ख़ामोशी फैली थी चारों ओर
कैसे थामे दामन, नहीं था उसका कोई छोर,
कमरे मैं एक दिया जल रहा था
इंतज़ार जिसका था, वो पल कहां था,
गुम थी चांदनी बादलों में
उसका साया भी खोया सवालों में,
मैं अकेली थी, देख रही थी उसकी राह
यादों का सराहा था, उसके आने की थी चाह।
गुजरा जमाना था मेरा अतीत
उसकी छाँव मैं ज़िंदगी रही थी बीत,
एक लौ जल रही थी सिरहाने
लगता था,वो आयेगा, किसी बहाने,
तभी........... तभी...........
एक आहट हुई
दरवाजे पे था कोई।
मैले हुए कपड़े थे
तक़दीर के टुकड़े थे जिस्म गंदा था
कैसा था ये बंदा?
लेकिन चेहरा था, जाना पहचाना
मानो, लौट आया ख्वाब पुराना,
जिसके लिए मांगी थी मन्नतें
दुआ मैं चाही थी, उसके लिए जन्नतें।
वह बैठा सामने मेरे
था अँधेरा हमें घेरे
बीच मैं थी अजीब सी तन्हाई
फिर भी ढूढंती रही, रिश्ते की गहराई।
तभी वह बोले
मेरा चेहरा खिला
वो कहाँ है? वो कहाँ है?
मुझे वो मालूम था, मगर
वो अपने में ही गुम था
मैं बोली.......
मैं वही हूँ, मैं वही हूँ,
मैं वो हूँ, ऐ मेरे हमसफ़र।
तुम्हारी नज़्म, तुम्हारी चाहत
खोयी हुई गजल, तुम्हारी राहत
मैं वही हुँ, जिसका था तुम्हे इंतज़ार
ऐ, मेरे हमराही, करो मेरा ऐतबार।
मैं समझाती रही
उसे जताती रही,
रूठे को मानती रही
यादों की कश्ती के, थे हम मझधार
उसे, कहते-कहते, अब मैं गयी हार
करती रही मैं ये इजहार
मैं वो हूँ, कर रहा था ये इन्कार।
उठ के चला गया
दरवाजे की तरफ,
मेरा रोम-रोम सहमा
मानो हो गयी बर्फ।
वह लौट गया
अंधेरें में खो गया,
मुझे दर्द देकर
कहीं सो गया।
बस में नहीं थी मेरी हालत
बेनाम गलियों से, फिर आयी खाली हाथ।
पहचान हुई उसकी
कागज़ कुछ उसके रह गये थे,
सब मेरी आखों से बह गये थे
चेहरा ही सिर्फ मेरे प्यार का था,
नाम था अलग, यही इकरार था।
फिर वही दिया जला
होंठ थे मेरे सिले,
मैं बैठी रही
उम्मीद की खिड़की तले,
बारिश मैं भीगी वो रात थी
कहनी कुछ, अधूरी बात थी,
सिर्फ........... उसकी आवाज गूंज रही थी।
वो कहाँ है? वो कहाँ है? वो कहाँ है?
मेरे खोये अपने का एहसास हुआ।
मैं चिल्लाई.....और रोयी
मैं वही हूँ, मैं वही हूँ,मैं वही हूँ,
मैं तो वही हूँ
ऐ मेरे मुसाफिर।
मैं वही हूँ, मैं वही हूँ, मैं वही हूँ।