मैं तैयार थी
मैं तैयार थी
मैं अपने अस्तित्व के लिए ईश्वर से लड़ने को तैयार थी,
मैं अपनी जिंदगी के लिए अपनी साँसों से लड़ने को तैयार थी।
मुझे हारा हुआ समझ कर लौट गई थी बैरंग जिंदगी,
मैं अपनी साँसों के लिए अपनी जिंदगी से लड़ने को तैयार थी।
गुजर रही थी जिंदगी पथरीली जमीन के काँटो पर,
फूलों की महक के लिए मैं काँटो से लड़ने को तैयार थी।
अधूरे रास्तों पर मंजिलों ने घर बनाया था अपना,
अपने कदमों के लिए मैं मंजिल से लड़ने को तैयार थी।
मेरी आँखों में डेरा जमाया था दर्द की चीखों ने,
मैं अपनी हँसी के लिए अपने दर्द से लड़ने को तैयार थी।