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Sudhanshu Raghuvanshi

Abstract Classics Fantasy

4  

Sudhanshu Raghuvanshi

Abstract Classics Fantasy

मैं प्रेम हूँ

मैं प्रेम हूँ

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ठीक तब,

जब मान चुके होते हो तुम 

अब मैं लौटकर नहीं आऊंगा, 

एक भिखारी की तरह

तुम्हारी देहरी पर खड़ा मैं

पुकारता हूँ तुमको


(दुत्कार मत देना)


ठीक तब,

जब विचार कर रहे होते हो तुम,

शायद किसी दुर्घटना का शिकार हो गया होऊँ,

मैं या मृत्यु ने ही, ग्रस लिया हो मुझे,

एक बयार के रूप में, 

मैं डाल देता हूँ खलल, तुम्हारे सोचने में


(गुस्सा मत होना)


ठीक तब, 

जब खिलखिलाकर हँसने ही वाले होते हो तुम, 

किसी पुराने दिनों के दोस्त की याद बनकर 

मैं चुभ जाता हूँ तुम्हारे हृदय में, 

और तुम, 

रो पड़ते हो, एकाएक, फूट फूटकर।


(ख्याल रखो अपना)


ठीक तब,

जब अपनी जीवनलीला समाप्त करने की इच्छा पर,

कर चुके होते हो तुम 

पूर्णतया मंथन

जीवित रहने की एक मामूली वजह बनकर,

मैं झकझोर देता हूँ तुम्हें


(फ़िर ऐसा न हो)


इसके अतिरिक्त मैं वह सब हूँ 

जो तुम सोच सकते हो, 

और वह भी, "जो कभी सोच भी नहीं सकते", तुम


(घबराओ, नहीं)


स्तब्ध कर देना,

मेरा शौक़ है।

स्तब्ध और वह भी इस क़दर कि एकबारगी

ईश्वर को भी लगा कि उसने बनाया है मुझे,

जब मैंने उसकी रचना की 


(तुम्हें भी लगता है?)


मैं...

मैं प्रेम हूँ

(चौंक गए)


मैंने कहा था, न...

स्तब्ध कर देना

मेरा...!!


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