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Sudhanshu Raghuvanshi

2.0  

Sudhanshu Raghuvanshi

धैर्य

धैर्य

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मैं सीखता हूँ हर एक चीज़ से 

पता नहीं

सही या गलत!

मैंने सीखा है कविता पढ़ते हुए

कविता लिखते समय

धैर्य रखना

मैंने शुरुआत किया लिखना 

कई कविताएं ! 


ये पूरी होंगी

जब..

कोयल, जो वर्षों से आम के

पेड़ से शीशम तक उड़ती है,

जाने किसे खोजती है?

बना लेगी अपना घोंसला !


जब..

सूरज धरती के

लिये पश्चिम से उगेगा


जब..

क्षितिज,

मेरी स्याही से निकल कर 

उभर आएगा वास्तव में 

यहीं कहीं या दूर


किंतु रुको! क्षण भर..

ये सब तो असम्भाव्य है ! 


मैंने प्रारंभ की थी

एक और कविता..

तुम्हारे साथ होने पर 


मेरी कविता का 'धैर्य' आज 

'ज़िंदगी भर की प्रतीक्षा' हो गया है।


मेरी कविता पूरी होगी न!


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