STORYMIRROR

Sudhanshu Raghuvanshi

Others

4  

Sudhanshu Raghuvanshi

Others

धैर्य

धैर्य

1 min
437

मैं सीखता हूँ हर एक चीज़ से 

पता नहीं

सही या गलत!

मैंने सीखा है कविता पढ़ते हुए

कविता लिखते समय

धैर्य रखना

मैंने शुरुआत किया लिखना 

कई कविताएं ! 


ये पूरी होंगी

जब..

कोयल, जो वर्षों से आम के

पेड़ से शीशम तक उड़ती है,

जाने किसे खोजती है?

बना लेगी अपना घोंसला !


जब..

सूरज धरती के

लिये पश्चिम से उगेगा


जब..

क्षितिज,

मेरी स्याही से निकल कर 

उभर आएगा वास्तव में 

यहीं कहीं या दूर


किंतु रुको! क्षण भर..

ये सब तो असम्भाव्य है ! 


मैंने प्रारंभ की थी

एक और कविता..

तुम्हारे साथ होने पर 


मेरी कविता का 'धैर्य' आज 

'ज़िंदगी भर की प्रतीक्षा' हो गया है।


मेरी कविता पूरी होगी न!


Rate this content
Log in