मैं निरुत्तर रहा।
मैं निरुत्तर रहा।
मैं निरुत्तर रहा।
मैं कुछ ना कहा।
चाहे हो खुशी या
या गहरा सा ग़म
चाहे हो तपन या।
चाहे घनघोर तम
लहरों के विपरीत
मैं हरदम ही बहा।
जो ये थी रुसवाई
बसती गई गहराई
दिल की पीर अब
दिखती रही पराई।
गमों संग कस्ती पे
तूफां के तेवर सहा।
भीड़ थी रिश्तों में।
जो मिले किस्तों में।
वो यादें पिरोते हुई।
कैद हुई बस्तों मे।
थामने को सब थे।
मैं अकेला ढ़हा।
जिंदगी ढलती रही।
धड़कन जलती रही।
उम्र हुई बौनी छौनी।
मौत मन पलती रही।
कोई पल "आह" का।
और कोई कहे "अहा"।