मैं निगेबान हूँ तुम्हारा …
मैं निगेबान हूँ तुम्हारा …
कुछ लोगो की अस्वीकृति से रुकना नहीं कभी
क्यूँकि अभी जहां हो
उस से बेहतर मंज़िल तक
पहुँच पाओगे तभी …
ले जायेगी ए राही कोशिश तेरी
हर उस मुक़ाम में …
पहुंच पाना जहां कभी सोचा भी ना हो ख्वाब में ...
क्यूँकि उन सपनों की दास्तान तो लिखी@यशवी....
एक ऐसे महा नायक ने
जिस ने बना के ये ज़मीं आसमान
संभाल लिए अपनी आगोश में …
बस पकड़ा दी अपने
किरदारो के हाथ में छोटी सी एक कलम.....
नाम दे के उसे बेहिसाब कोशिश का
लिख देने को एक नग़म …
पकड़ाई थी जब ये कलम उसने
अपने बनाये किरदारो को
पैगाम भी दे भेजा था …
कर लेना कोशिशें बेहिसाब ए राही .....
लिख जाना कुछ ऐसी कहानिया …
दोहराएँ सदियों तक
जिन्हें आने वाली जुबानिया …
बस इतना सा याद रख लेना
राही ओ राही .. राह ही चलनी है
ठिकाना नही हैं तुम्हारा वहां
आना वापिस है यहीं … हाँ यहाँ
जहां मैं हूं ....हां मैं हूं .... हां में हूं
राह तुम्हारी देख रहा
मैं भी बड़ा हूँ तन्हा
इसीलिए रुकना नही कहीं भी
मुसाफिर हो तुम .......
निगेबान हूँ तुम्हारा मैं।
