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Anita Purohit

Tragedy

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Anita Purohit

Tragedy

“मैं नही चाहती जन्मना”

“मैं नही चाहती जन्मना”

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मैं नहीं चाहती जन्मना

नहीं चाहती इतिहास की 

उस प्रेत छाया तले पनपना


जो मँडराती है अब भी आस-पास मेरे

कभी सीता का सा वजूद बनकर 

या कभी द्रौपदी का सा निरीह बोध लेकर 

एक ग़लत दाँव की सूली पर चढ़ जाने के लिए। 


नहीं चाहती माँ भी मेरी 

की जन्मूँ मैं और भोगूँ वही 

जो उम्र के हर पड़ाव भोगा है उसने 

पिता का अंकुश, भाई का वर्चस्व


पति के असीमित अधिकारों का शासन

और इसके आगे भी तो भोगना है उसे 

बेटे के लगाए बंधनों की अवांछित दासता 


नहीं चाहती वह की इस चक्रव्यूह में फँसकर

मैं तलाशती रहूँ अपना आप 

और अपने ही अक्स से यह पूछूँ


की कौन हूँ मैं ? मेरी पहचान क्या है ?

यही उनुत्तरित कोशिश तो करती रही है वह अब तक 

नहीं चाहती है वह फिर से उसे दोहराना 


नहीं चाहती है वह की छिन जाए 

मुझसे मेरा मासूम सा बचपन 

नहीं चाहती वह की किसी की दग्ध निगाहों से 


बिंध जाए मेरा खिलता हुआ यौवन 

नहीं चाहती वह की दुतकारा जाए मेरा बुढ़ापा

जैसा नानी का बीता था, जैसा उसका भी हो शायद


हाँ ये मुमकिन है की दे सकती है एक नीड़ मुझे वो 

मगर छाँव पर उसकी उसे भरोसा भी तो हो 

कब चढ़ा दी जाऊँ दहेज की सूली पर 


ये डर हर वक़्त सताता रहता है उसे 

या फिर उस नीड़ की कामधेनु बन आजीवन दोही जाऊँ

इस ख़तरे का आभास भयाक्रांत करता है उसे 


शोषण की इस अनवरत शृंखला में बद्ध वह 

अब भी संघर्षरत है उससे बाहर निकलने को 

एक व्यक्ति की अपनी पहचान पाने को 


जो जोड़ती है उसे इंसानी समता के अहसास से 

अपनी इस कोशिश में क्या जाने हारे वो या जीते वो 

काँटों भरी इस राह का सफ़र अभी लम्बा है बहुत 


राह के इन काँटों से बचाने के लिए ही तो 

चाहती है वह अपनी ही कोख़ में मुझे सुला देना

फिर ये गाली भी सुनना नागवार होगी ना उसे 


की उसने “बेटा” क्यूँ नहीं जना ?

मैं समझती हूँ उसकी यह मजबूरी 

इसलिये ही तो “मैं नहीं चाहती जन्मना।


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