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mridula verma

Classics

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mridula verma

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मैं नारी हूँ

मैं नारी हूँ

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धरती के कण-कण में मैं हूं

प्रकृति की सुंदरता में हूं

सारा संसार है मुझ में

शक्ति का अवतार भी मैं हूं।।


घर आंगन को महकाती

अन्नपूर्णा मैं कहलाती

बच्चों पर वात्सल्य लुटा कर

ममता की मूरत कहलाती।।


अनेकों रूप होते हैं मेरे

मैं ही जगत जननी कहलाती

नवरात्रि के पावन पर्व पर

शक्ति बनकर पूरी जाती।।


अपने हौसलों की ऊंची उड़ान से

आसमान को मैं छू आती।

जीवन के अवतरण में हूं

हाँ मैं ही नारी कहलाती।


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