मैं लिखने लगा
मैं लिखने लगा
बड़ी हुई बिटिया तो, मैं लिखने लगा।
आदर्श जनक का,हर गुर सीखने लगा।
कई कविताएं लिखी, लिख दी कहानियां।
आज तक सुनाता था,उसे सब जबानियां।
बिटिया छोटी रही,मैं जीता रहा सानंद से !
मैं बच्चा बना रहा,पड़ा न कभी द्वंद में,।
खेला-कूदा मानो,मेरा बचपन लौट आया।
बड़ी हुई बिटिया, तो मैं लिखने लगा।
कैसे क्या पढ़ाऊ उसे ?
क्या- क्या मैं सिखाऊं उसे ?
कि बिटिया हमारी कहीं फेल न करें।
हर मोड़ पर आज दुविधा पड़ी है,
बिटिया हमारी नासमझ बड़ी है।
बड़ी हुई बिटिया तो, मैं लिखने लगा,
हर कदम पर धोखा है, और गिद्धदृष्टि,
ललचाई नजरों से,जहरीले फूल घूम रहे हैं,
सोशल मीडिया का, खड़ा मकड़ा जाल।
कौन दुश्मन- दोस्त ? कुछ पता न चले।
मेरी प्यारी गुड़िया,अभी बहुत भोली है।
जी जान से सिखाऊं, उसे प्रबुद्ध बनाऊं।
बड़ी हुई बिटिया, तो मैं लिखने लगा,
मेरे लेखन का मकसद मिला,
पढ़ने वाली मेरी बिटिया है।
मेरी रचना नहीं बेपरवाह,
कदरदान मेरी बिटिया है।
उसके खातिर मैं लिखता रहूं,
मेरी बिटिया बस पढ़ती रहे।
हर समस्या पर लिखूंगा मैं,
हर रास्ता मेरी लेखनी, बताएगी।
यज्ञ- जीवन समर्पित मेरा,
होम कर दूंगा मैं अपने को।
चाहे जो भी अब बाधा मिले,
कदम पीछे अब रखेंगे नहीं।
अपनी बिटिया के खातिर तो हम,
सदा लिखते रहेंगे ही।
मुझे समझेंगी भी बेटियां मेरी,
मेरे कदमों का अनुसरण करेंगी,
रास्ता जो भी बताऊंगा मैं,
उस पर चलकर वह आगे बढ़ेंगी।
अपनी मेहनत और हिम्मत की,
वह ताकत सदा पहचानेंगी।
मेरे सपनों को जिएंगी वो,
उनकी सपनों को जिऊंगा मैं।
उनका सपना तराना मेरा,
मेरे सपनों को गाएंगी वो।
अब न बाधा बचेंगी कोई,
सारे रास्ते निकल आएंगे।
मेरी बिटिया नहीं केवल एक,
सारी बेटियां अपनी ही तो हैं।