मैं क्या चाहती हूँ
मैं क्या चाहती हूँ
मैं तुम्हारी रात नहीं
दिन बनना चाहती हूँ
जो छिपा न सको कभी
वो बात बनना चाहती हूँ
चमकना चाहती हूँ
सूरज की तरह सिर पर तेरे
मैं शाम को तेरा
इंतज़ार करना चाहती हूँ
काले बादलों के
घिर आने से पहले
तुझे सुलाकर
तुझमें खो जाना चाहती हूँ।
सबको पता चले ऐसा कि
मैं तेरी हो जाना चाहती हूँ
मिलना चाहती हूँ रंग में तेरे
घुल जाना चाहती हूँ संग में तेरे।
तुझमें खुद को , खुद में तुझको
देखना चाहती हूँ
तेरे शीतल मन में
पाओ पसार कर लेटना चाहती हूँ
मैं तुम्हारी रात नहीं
दिन बनना चाहती हूँ
जो छिपाना न पड़े कभी
वो बात बनना चाहती हूँ।
साथ बनना चाहती हूँ
'काश' बनना चाहती हूँ
राज़ नहीं तेरा मैं
आकाश बनना चाहती हूँ !