वक़्त
वक़्त
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आज वक़्त कुछ ऐसा हो रहा है
कि वक़्त भी अपने वक़्त पर रो रहा है
न कोई आगे न पीछे दिख रहा है
इंसान इंसानियत बिना बिक रहा है
लोग घर बैठे है अपने अपने
आँख मूंदकर देख रहे है नामुमकिन सपने
क्या वे जानते है ? ये सपने है उनके
या नहीं है उनके अपने ?
मुमकिन हो या नामुमकिन
सपने सच करना काम है हमारा ,
ये सब सच होते है जब
आसमान में टूटता है एक तारा ,
आसमान के भरोसे क्यों ?
जब विश्वास साथ हो हमारा !