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जो छिपाना न पड़े कभी वो बात बनना चाहती हूँ। जो छिपाना न पड़े कभी वो बात बनना चाहती हूँ।
जानना चाहती हूँ मैं तुम्हें बारिश की बूंद बनकर ! जानना चाहती हूँ मैं तुम्हें बारिश की बूंद बनकर !
लटकी छत को नापा करती, बिना गिरे ही सियापा करती... लटकी छत को नापा करती, बिना गिरे ही सियापा करती...
लोग घर बैठे है अपने अपने आँख मूंदकर देख रहे है नामुमकिन सपने लोग घर बैठे है अपने अपने आँख मूंदकर देख रहे है नामुमकिन सपने
आतंक तो ख़बर का वो हिस्सा है जो चलता आ रहा है जन्मों से नुकसान करने की उम्मीद में , आतंक तो ख़बर का वो हिस्सा है जो चलता आ रहा है जन्मों से नुकसान करने की उम्मीद ...