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Brijlala Rohanअन्वेषी

Abstract Classics Inspirational

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Brijlala Rohanअन्वेषी

Abstract Classics Inspirational

मैं काशी हूँ ।

मैं काशी हूँ ।

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युगों - युगों से अचल-अटल अविनाशी हूँ।

हाँ! मैं काशी हूँ।

महाकाल का महोच्चार हूँ, मैं।

कालभैरव हैं कोतवाल मेरे।


गंगा की अविरल धारा में बहनेवाली

मैं तीर्थ बड़ी सौभाग्य वासी हूँ।

चौरासी घाटों के घट-घट में

बसनेवाली मैं शहर बनारसवासी हूँ।

माँ गंगे की ममत्व का मैं साक्षात् साक्षी हूँ।

हाँ ! मैं वही काशी हूँ।


वही काशी जहाँ कभी तुलसी ने

राम का चरित्र बखान किया,

रचना की रामचरितमानस की और अपने साथ-साथ

हमारा भी जीवन उत्थान किया।


मैं कबीर की काशी हूँ, जहाँ धर्म का मर्म समझाकर 

समाज के लिए पुनीत काम किया।

मैं रैदास की काशी हूँ,

जिनके अनुसार 'मन चंगा है तो कठौती में भी गंगा है'। 


प्रेमचंद, जयशंकर और न जाने कितने

भरे पड़े विद्वानों की भंडारभूमि मैं।

मैं समृद्ध विरासत का विश्वासी हूँ।

हाँ मैं रग-रग में बहनेवाली गंगा नगरी काशी हूँ।।


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