मुझ अविश्वासी का अब कुछ और कहना जरूरी नहीं है न ! मुझ अविश्वासी का अब कुछ और कहना जरूरी नहीं है न !
मैं समृद्ध विरासत का विश्वासी हूँ। हाँ मैं रग-रग में बहनेवाली गंगा नगरी काशी हूँ।। मैं समृद्ध विरासत का विश्वासी हूँ। हाँ मैं रग-रग में बहनेवाली गंगा नगरी काशी ...
श्रमदान और कर्मदान की तुम ही जीवित मूरत हो। श्रमदान और कर्मदान की तुम ही जीवित मूरत हो।