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Manjula Pandey

Inspirational

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Manjula Pandey

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"मैं" का वध

"मैं" का वध

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सदियों से मैं ! फुकता आया

रक्तबीज-सा ! उगता आया

अंतः मन् में मुझे आसीन कर 

तुमने ही तो मुझे खूब पनपाया...

 

चाहता हूं मैं भी इक दिन जलना

चाहता नहीं किसी सत को छलना

पर ढूंढ़ रहा हूं ,उस राम को तुममें

सिखाये जो सबको मर्यादा में चलना..


लचर न्याय व्यवस्था लीक पर लाये

मजलूमों को सच्चा एक इंसाफ दिलाये

हर नुक्कड़, हर चौराहे पर बिकती अबलाओं को!

जो समाज में ऊँचा एक स्थान दिलाए..


क्या तुम सब में है साहस इतना ?कि!

फिर से स्व अंतः मन् में उसी राम का

धीरज, धरम और न्याय भाव जागा कर

कलियुग में त्रैता युग को वापस लाये....


वर्ना अठ्ठाहस करूंगा नित ऐसे ही खड़ा

मिलूंगा ,हर नुक्कड़ और हर चौराहे पर

सत्य पड़ा मिलेगा ! यहाँ एक किनारे बन

निर्बल छत-विछत-सी भीरू बाला-सा....


कर लो निर्णय !त्याग अहम को !अब! खुद

ही में से इस कलियुग का एक राम बनो !

चढ़ा प्रतय्यंचा सबल शक्ति से वध कर दो मेरा

हो मर्यादित, मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम बनो..


अभी समय है कर मंथन, ले लो निर्णय

वरना कल फिर मैं वापस आ सताऊंगा

हर दहलीज, हर गलियारों में मन की

अपनी-अपनी तूती खूब बजाऊंगा.....


गर् दहन करोगे सत् हृदय से बन प्रतीक

असत्य पर सत्य की जय कहलाऊंगा....

जिस दिन मन के अंदर मैं मार कर मैं मरूंगा

सही अर्थों में उसी विशेष दिन दशहरा मनाऊंगा...



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