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मैं दिल को कैसे समझाऊं

मैं दिल को कैसे समझाऊं

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गीत

मैं दिल को कैसे समझाऊँ

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नाता तुम छोड़ गए मुझसे,

मैं दिल को कैसे समझाऊँ।

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हों भींगी रातें बरसाती,

हो अलबेली मखमली शाम।

हों सर्द हवाओं के झोंके,

भर भर देते मदभरे जाम।।

मंजर ऐसा मनहारी जब,

मैं कैसे तुमको बिसराऊँ।

नाता तुम छोड़ गए मुझसे,

मैं दिल को कैसे समझाऊँ।।

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जब तक तुम थे तुमसे आगे,

मैं शुभे कहाँ जा पाया था।

तुम से ही दुनिया थी मेरी,

मुझ पर तुम्हारा साया था।।

क्या हुवा कहाँ तुम चले गए,

किस साये पर अब इतराऊँ।

नाता तुम छोड़ गए मुझसे,

मैं दिल को कैसे समझाऊँ।।

****

एक हरजाई हो बस तुम तो,

तुम विरह वेदना क्या जानो।

मैं याद महल से कब निकला,

अब तक हूँ कैद, वहीं मानो।।

ख्वाबों में ही आ जाओ ना,

राहत कुछ तो मन में पाऊँ।

नाता तुम छोड़ गए मुझसे,

मैं दिल को कैसे समझाऊँ।।

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अख्तर अली शाह "अनंत" नीमच

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