मैं बढ़ता चला गया
मैं बढ़ता चला गया
जिन्दगी के राह पर मैं बढ़ता चला गया
जीवन सुधरे कुछ मैं पढ़ता चला गया
है किताब के पन्नों पर भविष्य है अंधेरा
राह है किताब के पन्नों पर जब मुश्किलों ने घेरा
ज्ञान बढ़ता गया और भान बढ़ता गया
विस्वास का सूरज आसमान चढ़ता गया
मैं हर बुलन्दियों पर मंजिल गढ़ता चला गया
जीवन सुधरे कुछ मैं पढ़ता चला गया
जीवन का सार तो वो परम सुख है
यहां तो अंधकार और सुख ही दुख है
सुख दुख का यहां तांडव मचा है
स्वार्थ बंधन से यहां कौन बचा है
वेद किताब पढ़ ज्ञान हो जाएगा
गीता कुरान पढ़ कल्याण हो जाएगा
मन में मानवता भरने समय से लड़ता चला गया
जीवन सुधरे कुछ मैं पढ़ता चला गया।
