मैं और मेरा वक़्त..!
मैं और मेरा वक़्त..!
मैं और मेरा वक़्त..!
अक्सर इक दूजे से उलझते रहते..
कभी वक़्त मुझसे कहता..अभी तेरा वक़्त नहीं आया...
कभी मैं वक़्त से कहता...मेरा वक़्त ही ख़राब चल रहा ..!
मैं और मेरा वक़्त..!
इक दूसरे से आँख मिचौली खेलते रहते,
कभी लोग कहते वक़्त के साथ चलो..
कभी वक़्त से आगे निकल पड़ो..!
पर वक़्त और मेरी...जैसे थी मीलों की दूरी..!
मैं निराश हुआ, हताश हुआ ,मेरी हिम्मत पर प्रतिघात हुआ..!
जब हौसलों ने दिखाई चाह,फिर वक़्त ने खुद ही दिखाई राह..
वक्त ने साथ मेरा , फिर इस कदर निभाया..
मानो बाती ने जलकर,दीये का साथ निभाया.!
खो रहे जुनून को, उत्साह से उठाया,
कमी थी मुझमें सिर्फ हौसले की, ये हौसला देकर सिखाया ।
बस ऐसे ही चलते रहते हैं ..मैं और मेरा वक़्त..!