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Meena Singh "Meen"

Inspirational

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Meena Singh "Meen"

Inspirational

मैं अहिल्या नहीं हूँ...

मैं अहिल्या नहीं हूँ...

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सुनो, अपने अहम में तुमने,

मुझे पत्थर बना दिया है, और

अब तोड़ना भी चाहते हो?

मुझे मेरी सीमाएँ बताकर,

तय की हुई मर्यादाएँ सिखाकर,

त्याग और सहानुभूतियों का,

जरूरी पाठ पढ़ाकर,

मुझे औरत होने का अनूठा,

मर्म और अर्थ समझाकर,

ममत्व और स्त्रीत्व के महीन,

धागों में मुझे उलझाकर,

कभी देवी, कभी महाशक्ति का,

मुझ पर तमगा लगाकर,

हर बार समाज की

दोहरी मानसिकता जताकर..


मगर सुनो....

मैं अफ़सुर्दा होती हूँ हर बार,

तुम्हारी हर सोच पर....

मैं आज भी हैरां होती हूँ।


तुम्हें पता है...

मुझे औरत होने या

कहे जाने से इंकार नहीं,

मगर हाँ, इंकार है मुझे,

तुम्हारे दोहरे चयन पर।

तुम्हें जीवनसाथी तो,

समझदार ही चाहिए,

लेकिन वो गर तुम्हारे समक्ष,

समझदारी दिखाए तो,

तुम बुरा मान जाते हो...

तुम्हें चाँद सी महबूबा की,

ख़्वाहिश तो होती है,

पर उसकी रोशनी को तुम,

कैद कर लेना चाहते हो..


सुनो, और भी बहुत कुछ है,

जिसे शब्द नहीं दे पाऊँगी,

चूँकि एहसास हैं वो जो,

शब्दों में बाँधे नहीं जा सकते,

शब्दों में कहे भी नहीं जा सकते,

शायद जताए भी नहीं जा सकते,

क्योंकि एहसास सिर्फ़ और सिर्फ़,

महसूस ही किए जा सकते हैं।


अब.......

अगर मैं पत्थर बन ही चुकी हूँ तो,

मुझे तोड़कर तुम जो पाओगे....

वो यकीनन पत्थर ही तो होगा,

क्यूँकि तुम बेशक राम हो पर,

मैं.....

मैं अहिल्या नहीं हूँ ।



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