मातृत्व
मातृत्व
मातृत्व अतुल्य है मां कौशल्या को भी इसी की आकांक्षा है ।
कीजै शिशु लीला अति प्रियशीला
यह सुख परम अनूपा।भाव दर्शनीय अनुपम है।
मातृत्व भाव शब्दों से अकथनीय है,
अर्थ ऐसा अपरिमित अकल्पनीय है।
मातृत्व भाव बच्चे की किलकारी में ,
दिखे वह भाव जो पति की थाली में।
मातृत्व सुरक्षा प्रेरणा का एक बंधन ,
यह प्यार-दुलार का सुगंधित है चंदन।
मातृत्व सुख मूक खग-मृग भी संजोती,
हर गम को हंसते-हंसते है सह जाती।
अहसास ये कितना मोहक सराहनीय,
सुप्त हृदय गोपनीय,हर्षातिरेकवंदनीय।
रिश्तो का दर्पण,मीठा नंदनीय आभास,
जीवन की धड़कन परिवार आकाश ।
शिशु प्रथम रुदन सुन दृग हैं छलकते,
थकी होने पर भी फिरकी से थिरकते।
है आधारशिला संस्कृति व संस्कार की,
भाव नहीं बहती नदी एक रसधार की ।
शिशु की मुस्कान में करे निसार संसार,
नामुमकिन करे मुमकिन,ऐसा ये ज्वार।
प्रेरक शक्ति आत्मा से फूटता स्त्राव है,
और किसी में देखा क्या? ऐसा दांव है।
मातृत्व एक नेटवर्क का पूरा है संजाल,
सुख-दुख परे खुशी से बंधने का जाल।
शिशु का पेट में पैर मारना है सुखसार,
अद्भुत कठिन यात्रा भरा प्यार-मनुहार।