मात-पिता की सेवा
मात-पिता की सेवा
मात-पिता की सेवा, जो दिल से किया करते हैं।
ऐसे भक्तों को सदा प्रभु , सब कुछ दिया करते हैं।।
जन्म दिया इस धारा में तुमको, लगा कर रक्खा सीने से,
कभी भी होने न दिया जुदा तुमको, दूर कभी अपने से,
न जाने फिर भी क्यों लोग इन्हें, अपना बोझ समझते हैं।।
अपने अरमानों को दबा, हसरत पूरी किया करते हैं,
दुनिया के कांटों से बचा, जुल्म-सितम सहा करते हैं,
न जाने फिर भी क्यों इनको, अपने राहों के कांटे लगते हैं।।
खून-पसीने से जो सींचा, अपनी बगिया के इन फूलो
ं को,
मुरझा न जाएं अपने इस जीवन में, भूल गए खुद अपने को,
समझ न सके यही कांटे बनेंगे, फिर भी उफ! कभी न करते हैं।।
भूल क्यों जाते इनको भी, इस घड़ी का सामना करना होगा,
जो बोए थे बीज अपनों में, वैसा ही फल भोगना होगा,
भुगत रहे हैं संस्कार अपने, प्रभु से फिर भी न डरते हैं।।
मात-पिता ही प्रभु समाना, इतना क्यों नहीं समझते हैं,
प्रकृति की लीला निराली, दर-दर माथा पटकते हैं,
"नीरज" कर ले "मात-पिता की सेवा", इनमें ही प्रभु रमते हैं।।