मासूम हँसी
मासूम हँसी
वक्त बदल गया है, कहते आये हैं, हर पीढ़ी के लोग
कुछ भी तो मन का नहीं, रिश्ते भी बन गए हैं ढोंग l
कहते हैं, अपना ही ख़ून, अब पानी में बदल गया है ,
भावनाओं, आदर्शों का मूल्य, अब ख़त्म हो गया है l
नदियों मे नूतन जल धारायें प्रवाहित हो रही हैं
पुरानी परतें छोड़कर चट्टानें विखंडित हो रही हैं l
इस परिवर्तनशील जगत में, आखिर कुछ तो शाश्वत है !
ग़मों की चट्टानों को चीरता कहीं तो, सुकून का मरहम है !
हजारों वर्षों की सम्पति से भी है जो अनमोल
चेहरे की मासूम हँसी, मुस्कुराहट भरे, दो बोल
सच ही तो है -
धरती पर मानो जन्नत बिछा देती है,
इक मासूम हँसी हर ग़म भुला देती है l
