माँ
माँ
माँ की पनाह में
पलता है हर
मासूम का बचपन।
फिर क्यूँ रे मानव ?
तू बड़े होकर ,
रख देते उस माँ
को किसी दूसरे घर।।
माँ की पनाह में
पलता है हर
मासूम का बचपन।
फिर क्यूँ रे मानव ?
तू बड़े होकर ,
रख देते उस माँ
को किसी दूसरे घर।।