माँ
माँ
जो खुद गीले में सो कर
सूखे में मुझे सुलाती थी
वह रात रात भर लोरी गा कर
आँखों में नींद बुलाती थी
मैं लात मारता इक छाती पर
दूसरी से दूध पिलाती थी
वो माँ है जो खुद का पेट दबा
कर मुझको भर पेट खिलाती थी
जो खुद गीले में सो कर
सूखे में मुझे सुलाती थी
वह रात रात भर लोरी गा कर
आँखों में नींद बुलाती थी
मैं लात मारता इक छाती पर
दूसरी से दूध पिलाती थी
वो माँ है जो खुद का पेट दबा
कर मुझको भर पेट खिलाती थी