पुराना ख़त
पुराना ख़त
बीता हुआ लम्हा फिर याद आया
इक पुराना ख़त जब मेरे हाथ आया
ख़त खोला तो इक अजब बू आयी
जिसने हौले हौले मेरी नीदें उड़ाई
ख़त की स्याही फीकी पड़ चुकी थीं
फिर भी सारी यादें मीठी हो चुकी थीं
ये बू शायद उस सूखे गुलाब में था
जो मेरे ख़त के जवाब मे था
सूखा पड़ा गुलाब जब आँसू से महका
वीरान पड़ा आशिक तेरी यादों मे दहका
मैं पल भर रोया पल भर मुस्कुराया
इक पुराना ख़त जब मेरे हाथ आया