मान
मान


कूड़े के ढेर में रही चित्कार
आधी खायी हुयी नन्ही जान
आज मांग रही इन्साफ है।
फ़फ़क फ़फ़क कर मुँह छिपाए '
ये लक्ष्मी ' सरस्वती की संतान है
कैसा ये समाज है
तराजू पर ममता हल्की भारी ये संसार है।
लोक लाज के भय से 'कुंती ने त्यागा कर्ण को था।
आज ' क्यों केवल कन्या के लिए हर माँ लाचार है ।
जहाँ होती दुर्गा की पूजा '
कन्या भ्रूण की दुर्गति क्यो सड़क पर वही होती आज है ।
रण चण्डी का रुप धर
है माँ आज की नारी का आह्वाहन है '
पुरुष के दम्भी समाज में
काली का ही मान है ।