मां
मां
माँ का प्यार सवेरे की पहली आवाज़ है
सुबह की पहली किरण है दोपहर के लंच की प्यारी सी खुशबू है
शाम में घड़ी को देख के
जो इंतजार करे वो है मां का प्यार
थक गया होगा थोड़ा पानी पीले
उस पानी की बूंद में है मां का प्यार
बचपन मे नींद न आने पर जो
लोरी की मिठास वो मां का प्यार है
रातों को खुद जागकर सुलाना वो माँ का प्यार है
खुद एक रोटी कम खाना लेकिन
बचे का पेट भरा रहे वो माँ का प्यार है
चोट लगने पर सम डांटना और
फिर मलहम लगाना वो मां का प्यार है
पिता की डांट से बचाना फिर
खुद डांट लगाना वो प्यार है
ईश्वर से ये सुखी रहे इसकी लंबी
उमर हो ये मांगना वो प्यार है
खुद की तकलीफ को एक जगह रख कर
शाम में बच्चे के आने के बाद ही खाना खाना मां का प्यार है
बच्चे को हर खुशी मिले
खुद तकलीफ में होके भी काम पर जाना
जिसे बच्चा पड़ स्के ये मां का प्यार है...
जिंदगी और समाज से जो छुपा कर रखा है चेहरा तुमने
वो चेहरा पढ़ने वाली मां है
उस चेहरे के पीछे डर को
आंचल से पोछने वाली मां है
खाना बनाते हुए उंगली जल जाना
फिर कहना एक और रोटी खायेगा क्या
ये मां का प्यार है
शब्दों के इन बंधन से इन सीपों की माला से क्या पिरोऊंगा
जिसके प्यार के लिए स्वयं नारायण
तक धरती पर राम और कृष्ण
बन के आए
उस मां की ममता और प्यार का मैं
क्या व्याकरण करूंगा
मैं क्या वर्णन करूंगा।